भाग 1: शरारती लेकिन प्यारा
गुड्डू एक छोटा सा बंदर था जो आम के पेड़ पर अपने परिवार के साथ रहता था। वह बहुत शरारती था — कभी किसी के झोले से केला निकाल लेता, तो कभी किसी के ऊपर आम फेंक देता। लेकिन उसका दिल बहुत साफ़ था।
गुड्डू के दोस्त थे — चिंकी तोता, झुनझुन गिलहरी और बल्लू खरगोश। सब उसकी शरारतों से परेशान तो थे, लेकिन उसके बिना जंगल अधूरा लगता था।
एक दिन जंगल में खबर फैली — “जंगल मेला लगने वाला है!” और मेला का सबसे बड़ा आकर्षण था “सच्चाई का मुकुट” — जो सिर्फ उस जानवर को मिलेगा जो सच्चा, ईमानदार और मददगार होगा।
भाग 2: चालाक लोमड़ी की योजना
लोमड़ी झपाटा जंगल का सबसे चालाक जानवर था। वह बहुत चालबाज़ था और हमेशा खुद को सबसे अच्छा साबित करने की कोशिश करता था।
झपाटा ने सोचा, “अगर मैं जंगल के सबसे सच्चे जानवर का अभिनय करूँ, तो मुकुट मेरा हो जाएगा।”
उसने कुछ जानवरों को लालच देकर झूठी कहानियाँ फैलानी शुरू कर दीं कि वह बहुत दयालु और ईमानदार है।
गुड्डू को यह सब सुनकर गुस्सा आया। वह जानता था कि झपाटा झूठ बोल रहा है। लेकिन कैसे साबित किया जाए?
भाग 3: सच्चाई की परीक्षा
जंगल के राजा, शेर सिंह, ने घोषणा की —
“सच्चाई का मुकुट उसी को मिलेगा जो तीन कठिन परीक्षाओं में सफल होगा:
- ईमानदारी की परीक्षा
- मदद का भाव
- खुद की गलती मानने का साहस”
गुड्डू ने भी हिस्सा लेने का फैसला किया।
पहली परीक्षा थी — ईमानदारी की।
जंगल में कुछ सोने के फल गिरा दिए गए और देखा गया कि कौन उन्हें राजा को लौटाता है। झपाटा ने चुपचाप एक फल छुपा लिया।
गुड्डू ने सोने का फल उठाया और तुरन्त राजा को लौटा दिया।
दूसरी परीक्षा — मदद का भाव।
एक नकली घायल हिरण जंगल में रखा गया। कई जानवरों ने अनदेखा कर दिया, लेकिन गुड्डू तुरंत उसके पास गया और उसकी मदद की। वह जानता था कि यह परीक्षा है, फिर भी उसने मदद की।
तीसरी और आख़िरी परीक्षा — अपनी गलती मानना।
राजा ने जानबूझकर गुड्डू के सामने कुछ केले रखवाए और देखा कि क्या वह चोरी करेगा। गुड्डू ने एक केला खा लिया लेकिन तुरंत बोला —
“माफ़ कीजिए राजा जी, मैं भूख से मजबूर हो गया और बिना अनुमति खा गया। यह मेरी गलती थी।”
भाग 4: सच्चाई की जीत
राजा सिंह ने सभी जानवरों को बुलाया और बोला —
“हमने हर परीक्षा में हर प्रतिभागी को देखा। कई ने झूठ बोला, कई ने मदद नहीं की, और कई ने अपनी गलती नहीं मानी। लेकिन एक ने तीनों परीक्षा में सच्चाई दिखाई। और वो है — गुड्डू बंदर!”
पूरा जंगल तालियों से गूंज उठा। झपाटा शर्म से चुप था। वह जान गया कि चालाकी से कुछ नहीं मिलता।
गुड्डू को सच्चाई का मुकुट पहनाया गया। वह बहुत खुश था, लेकिन उसने कहा,
“राजा जी, मैं मुकुट तो ले रहा हूँ, पर मैं अब और शरारतें नहीं करूँगा। मैं अब जंगल के बच्चों को सच्चाई और अच्छाई सिखाऊँगा।”
भाग 5: गुड्डू की नई पहचान
अब गुड्डू सिर्फ शरारती बंदर नहीं था, वह जंगल का ईमानदार मित्र बन चुका था। हर बच्चा उससे मिलकर प्रेरणा लेता, और गुड्डू उन्हें कहानियाँ सुनाता —
“कभी झूठ मत बोलो, और कभी किसी की बुराई मत करो। क्योंकि अंत में जीत सच्चाई की ही होती है।”
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