
एक दिन, रवि अपने खेतों के पास खेल रहा था कि अचानक उसकी नज़र एक पुरानी, टूटी-फूटी इमारत पर पड़ी। उसे याद आया कि दादी ने उसे बताया था कि यह इमारत कभी गाँव का सबसे बड़ा पुस्तकालय हुआ करता था। पर कई साल पहले यह बंद हो गया था।
रवि एक नौ साल का लड़का था जिसे पढ़ने का बहुत शौक था। लेकिन उसके छोटे से गाँव में एक भी पुस्तकालय नहीं था। वह अक्सर अपनी माँ से कहता, “माँ, काश हमारे गाँव में भी एक बड़ा सा पुस्तकालय होता जहाँ मैं ढेर सारी किताबें पढ़ सकता।”
रवि की उत्सुकता बढ़ गई। उसने सोचा, क्या होगा अगर वहाँ अब भी कुछ किताबें बची हों?
वह धीरे-धीरे उस इमारत की ओर बढ़ा। दरवाज़ा ज़ंग खा चुका था, लेकिन थोड़ी मेहनत के बाद रवि ने उसे खोल लिया। अंदर का दृश्य देखकर वह दंग रह गया। दीवारों पर किताबों की अलमारियाँ अब भी थीं, लेकिन उन पर धूल की मोटी परत जमी हुई थी।
रवि ने एक किताब उठाई और उसे झाड़ा। तभी अचानक से एक हल्की सी रोशनी चारों ओर फैल गई। रवि ने डरते हुए किताब को वापस रखा, लेकिन उसकी जिज्ञासा उसे रोक नहीं पाई।
उसने और किताबें खोजना शुरू कर दिया। तभी उसे एक चमकती हुई किताब दिखी, जिसका शीर्षक था “जादुई पुस्तकालय का रहस्य”। रवि ने जैसे ही वह किताब खोली, कमरे में चारों ओर रंग-बिरंगी रोशनी फैल गई और सबकुछ चमकने लगा।
वह देखता है कि अब वह किसी और ही दुनिया में है। वहाँ किताबें हवा में तैर रही थीं, अलमारियाँ खुद-ब-खुद चल रही थीं, और एक छोटी सी मेज पर चाय का कप अपने आप हिल-हिल कर रवि का स्वागत कर रहा था।
“अरे! ये क्या है?” रवि ने चौंकते हुए कहा।
तभी एक बूढ़े व्यक्ति की आवाज़ आई, “स्वागत है, रवि! मैं हूँ इस पुस्तकालय का संरक्षक, प्रोफेसर किताबीलाल।”
रवि ने चौंक कर इधर-उधर देखा। एक सफेद दाढ़ी वाले व्यक्ति, जो हरे रंग के चोगे में थे, मुस्कुराते हुए उसकी ओर बढ़े।
“तुमने वह जादुई किताब खोल दी, जिसका मतलब है कि तुम्हारा दिल सच्चे ज्ञान की तलाश में है,” प्रोफेसर किताबीलाल ने कहा।
“यह सब क्या है?” रवि ने हैरानी से पूछा।
“यह पुस्तकालय असल में एक जादुई पुस्तकालय है। यहाँ हर किताब में ज्ञान के साथ-साथ जादू भी भरा हुआ है। पर यह पुस्तकालय सालों से बंद था क्योंकि कोई भी इसके रहस्य को समझ नहीं पाया।”
रवि ने उत्सुकता से पूछा, “तो क्या मैं यहाँ पढ़ सकता हूँ?”
“बिल्कुल!” प्रोफेसर ने कहा। “पर एक शर्त है। तुम्हें पुस्तकालय के रहस्यों को समझना होगा और उसका अच्छे काम के लिए इस्तेमाल करना होगा।”
रवि ने खुशी से हामी भर दी।
वहाँ की किताबें अद्भुत थीं। कुछ किताबें बोलती थीं, कुछ तस्वीरें खुद-ब-खुद बनाती थीं, और कुछ किताबें तो रवि के सवाल पूछने पर उत्तर भी देती थीं।
एक दिन रवि ने एक ऐसी किताब खोली जिसमें एक भूलभुलैया बनी हुई थी। किताब ने उससे कहा, “अगर तुम इस भूलभुलैया को हल कर पाओगे, तो तुम्हें एक बड़ा रहस्य पता चलेगा।”
रवि ने पूरे मन से कोशिश की। वह एक रास्ते से चलता, फिर दूसरा मोड़ लेता। कभी-कभी रास्ता बंद हो जाता, लेकिन रवि हार नहीं मानता। अंत में, वह भूलभुलैया के केंद्र में पहुँच गया।
वहाँ एक सोने की चमचमाती किताब रखी हुई थी। किताब ने कहा, “बधाई हो, रवि! तुमने अपना पहला रहस्य हल कर लिया। अब मैं तुम्हें एक जादुई शक्ति दूँगी – ज्ञान की दृष्टि।”
रवि ने पूछा, “ज्ञान की दृष्टि?”
“यह वह शक्ति है जो तुम्हें किसी भी किताब का सच्चा अर्थ समझने में मदद करेगी। पर इसका इस्तेमाल सिर्फ अच्छे कामों के लिए करना होगा।”
रवि ने खुशी-खुशी उस शक्ति को स्वीकार किया। अब वह जादुई पुस्तकालय में आता और नई-नई किताबें पढ़ता। उसके ज्ञान में लगातार वृद्धि हो रही थी।
लेकिन एक दिन, जब रवि ने किताबीलाल प्रोफेसर से पूछा, “क्या मैं इस पुस्तकालय के रहस्य को सबके साथ बाँट सकता हूँ?”
प्रोफेसर मुस्कुराए और बोले, “रवि, यह पुस्तकालय सिर्फ उन्हें दिखता है जिनका दिल सच्चा और जिज्ञासु हो। अगर तुम इसे दूसरों को दिखाना चाहते हो, तो उन्हें भी सच्चे ज्ञान की तलाश में लगाना होगा।”
रवि ने यह बात समझ ली। अब वह अपने दोस्तों को किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करने लगा। वह उन्हें न सिर्फ पढ़ाई में मदद करता बल्कि उनकी जिज्ञासा को भी जगाता।
कुछ सालों बाद, रवि अपने गाँव का सबसे बुद्धिमान और ज्ञानी व्यक्ति बन गया। लेकिन उसका सबसे बड़ा रहस्य वही जादुई पुस्तकालय था, जो आज भी वहाँ मौजूद था, इंतज़ार कर रहा था एक और सच्चे जिज्ञासु के आने का।
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