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रहस्यमयी गुड़िया का रहस्य

बहुत समय पहले एक छोटे से गाँव में एक बच्ची रहती थी जिसका नाम था अन्वी। अन्वी को पुरानी चीज़ें इकट्ठा करना बहुत पसंद था। जब भी उसे कोई पुराना खिलौना या किताब मिलती, वह उसे अपने कमरे में सहेज कर रखती थी। लेकिन एक दिन अन्वी को एक ऐसी गुड़िया मिली, जिसने उसकी ज़िंदगी ही बदल दी…

गुड़िया की खोज

एक रविवार की सुबह अन्वी अपने दादा जी के पुराने सामान वाले कमरे में खेल रही थी। वह एक लकड़ी के पुराने बक्से को खोलने की कोशिश कर रही थी, जो काफी समय से बंद था। कुछ देर की मशक्कत के बाद वह बक्सा खुल गया। उसमें एक पुरानी सी धूल से सनी गुड़िया थी। गुड़िया की आँखें कांच की बनी थीं और उसकी मुस्कान थोड़ी अजीब सी लग रही थी।

अन्वी ने उसे उठाया और कहा, “ओह, कितनी प्यारी है! मैं तुम्हारा नाम रखूंगी… रूबी।”

अन्वी ने रूबी को अपने साथ अपने कमरे में रख लिया, और धीरे-धीरे उसके साथ बात करना भी शुरू कर दिया।

अजीब घटनाएँ

रात के समय जब सब सो जाते, अन्वी को लगता कि रूबी की आँखें चमक रही हैं। एक दिन उसकी माँ ने देखा कि अन्वी के कमरे में अलमारी अपने आप खुली थी। माँ ने सोचा शायद हवा से हुआ होगा। लेकिन जब यह रोज़ होने लगा, तो सभी परेशान होने लगे।

एक दिन अन्वी ने अपनी माँ से कहा, “माँ, रूबी मुझसे बात करती है। वह कहती है कि वह अकेली नहीं रहना चाहती।”

माँ ने हँसते हुए कहा, “गुड़िया कैसे बात कर सकती है, बेटा? ये तो तुम्हारा वहम है।”

लेकिन अन्वी को यकीन था कि रूबी में कुछ तो अजीब है।

सपनों में रूबी

अन्वी को रोज़ रात एक सपना आता, जिसमें वह एक पुराने से महल में होती और रूबी उसके हाथ में होती। महल में अंधेरा, सीढ़ियाँ टूटी हुई, और दीवारों पर अजीब चित्र बने होते। सपने में एक आवाज़ आती थी – “मुझे आज़ाद करो, अन्वी… मेरी आत्मा इस गुड़िया में क़ैद है।”

अन्वी डर जाती और उठ कर रोने लगती।

दादी माँ की कहानी

एक दिन अन्वी की दादी उससे मिलने आईं। उन्होंने रूबी को देखा और तुरंत चौंक गईं। उन्होंने कहा, “यह गुड़िया तो बहुत पुरानी है। मैं इसे जानती हूँ।”

अन्वी ने पूछा, “आप इसे कैसे जानती हैं?”

दादी बोलीं, “बहुत साल पहले इसी गाँव में एक लड़की थी – रूपा। वह इस गुड़िया से बहुत प्यार करती थी। लेकिन एक दिन आग लगने से उसका घर जल गया और वह उसी गुड़िया के साथ अंदर रह गई। लोगों का मानना था कि उसकी आत्मा उसी गुड़िया में समा गई।”

डर का साया

अब अन्वी को रूबी से डर लगने लगा था। वह उसे कमरे से बाहर फेंकना चाहती थी, लेकिन हर बार जब वह उसे बाहर फेंकती, रूबी वापस उसके कमरे में आ जाती।

एक दिन रूबी की आँखों से लाल रोशनी निकलने लगी। अन्वी ने चिल्लाया, “कृपया मुझे छोड़ दो!”

गुड़िया अपने आप बोलने लगी, “जब तक मेरी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलेगी, मैं यहाँ से नहीं जाऊँगी!”

रहस्य की खोज

अन्वी ने तय किया कि वह इस रहस्य को सुलझाकर रूपा की आत्मा को शांति देगी। उसने दादी से पूछा, “रूपा का घर कहाँ था?”

दादी ने उसे गाँव के बाहर पुराने खंडहर का रास्ता बताया। अन्वी ने अपने दोस्त राघव को साथ लिया और दोनों उस खंडहर तक गए।

खंडहर की रहस्यमयी गुफा

खंडहर में पहुँचते ही उन्हें एक गुफा जैसी जगह दिखी, जहाँ एक पुराना झूमर लटका था और दीवार पर “रूपा” नाम लिखा था। वहाँ एक पुराना झूला भी पड़ा था, जो अपने आप हिल रहा था।

वहाँ एक छोटी सी तिजोरी थी, जिसे खोलते ही उन्हें एक पुरानी डायरी मिली। डायरी में लिखा था:

मैं रूपा हूँ। अगर कोई मेरी गुड़िया पाता है, तो मेरी आत्मा को उस जगह लाकर मेरी अंतिम इच्छा पूरी करेमेरी गुड़िया को मेरी कब्र पर रखना।

अंतिम इच्छा की पूर्ति

अन्वी और राघव ने गाँव के पंडित जी से बात की और कब्रिस्तान में रूपा की कब्र खोज निकाली। उन्होंने एक छोटे से पूजा के बाद रूबी को रूपा की कब्र पर रख दिया।

जैसे ही गुड़िया वहाँ रखी गई, हवा तेज़ चलने लगी, आसमान में बादल घिर आए और अचानक सब शांत हो गया। रूबी की आँखों की चमक धीरे-धीरे बुझने लगी और वह सामान्य गुड़िया बन गई।

शांति और सीख

उस रात अन्वी ने पहली बार सुकून से नींद ली। अब उसके सपने भी शांत और सुंदर थे। उसने सीखा कि पुरानी चीज़ों की अपनी कहानी होती है और हमें उन्हें समझदारी से संभालना चाहिए।

निष्कर्ष

“रहस्यमयी गुड़िया का रहस्य” एक डरावनी लेकिन शिक्षाप्रद कहानी है जो बच्चों को न केवल रोमांच देती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि हमें अतीत की बातों की इज्ज़त करनी चाहिए और सच्चाई की तलाश कभी नहीं छोड़नी चाहिए।

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