बच्चों के एवरेस्ट जैसे हौसले की बात
अध्याय 1: एक नया सपना
छोटे से गाँव सूरजपुर में रहने वाले बच्चों के लिए ज़िंदगी बहुत साधारण थी। हर दिन स्कूल जाना, खेलना, और खेतों में अपने माता-पिता की मदद करना उनकी दिनचर्या थी। लेकिन इस गाँव में तीन ऐसे बच्चे थे, जिनका सपना आम बच्चों से अलग था।
राजू, नेहा और अली—ये तीन दोस्त हर दिन स्कूल के बाद गाँव के बाहर की पहाड़ियों पर चढ़ने जाते थे। उन्हें ऊँचाइयों को छूने का जुनून था। एक दिन, जब वे पहाड़ी पर चढ़ रहे थे, तो उनकी नज़र एक किताब पर पड़ी, जो किसी ने वहाँ छोड़ दी थी।
नेहा ने किताब उठाई और पढ़ना शुरू किया। यह किताब थी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई के बारे में।
“क्या एवरेस्ट सच में इतनी ऊँची चोटी है?” राजू ने आश्चर्य से पूछा।
“हाँ!” अली ने कहा, “यह दुनिया की सबसे ऊँची चोटी है और इसे चढ़ने के लिए हिम्मत और मेहनत चाहिए।”
“तो क्या हम भी कभी ऐसा कर सकते हैं?” नेहा ने आँखों में चमक लिए पूछा।
तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा। उस दिन उनके दिलों में एक नया सपना जन्मा—ऊँचाइयों को छूने का सपना!
अध्याय 2: चुनौती की शुरुआत
अब उन्होंने ठान लिया कि वे अपने गाँव की सबसे ऊँची पहाड़ी, जिसे लोग “मिनी एवरेस्ट” कहते थे, उसे फतह करेंगे।
“यह पहाड़ी एवरेस्ट जितनी बड़ी तो नहीं, लेकिन हमारे लिए यह पहली परीक्षा होगी,” राजू ने कहा।
नेहा ने योजना बनाई, “हमें पहले अपनी ताकत बढ़ानी होगी। दौड़ना, रस्सियों पर चढ़ना और सही तकनीक सीखनी होगी।”
अगले कुछ हफ्तों तक वे हर सुबह जल्दी उठते और मेहनत करने लगे। वे दौड़ते, अपने बैग में पत्थर भरकर भार उठाने का अभ्यास करते और पेड़ों पर चढ़ने की कला सीखते।
गाँव वाले पहले तो उन पर हँसते, “अरे बच्चों, पहाड़ों पर चढ़कर क्या करोगे?” लेकिन तीनों ने हार नहीं मानी।
अध्याय 3: पहला प्रयास और हार
आखिरकार, वह दिन आया जब उन्होंने मिनी एवरेस्ट पर चढ़ाई करने की कोशिश की। वे अपने साथ थोड़ी सी रोटी, पानी की बोतल और रस्सियाँ लेकर निकले।
पहाड़ी की चढ़ाई आसान नहीं थी। जैसे-जैसे वे ऊपर बढ़ते गए, हवा तेज़ होती गई। अली का पैर एक फिसलन भरी चट्टान पर पड़ा और वह गिरते-गिरते बचा।
“हम यहाँ तक आ तो गए, लेकिन आगे बहुत खतरनाक रास्ता है,” नेहा ने चिंता से कहा।
राजू ने देखा कि सूरज ढलने वाला था। “हमें वापस लौटना होगा।”
तीनों बच्चों के दिल टूट गए। वे असफल रहे थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
अध्याय 4: हौसले की असली परीक्षा
घर लौटकर वे उदास थे, लेकिन उनकी आँखों में अभी भी हौसला था।
अगले दिन, गाँव के बुज़ुर्ग दादा जी ने उनसे पूछा, “तुम लोग उदास क्यों हो?”
जब उन्होंने अपनी पूरी कहानी सुनाई, तो दादा जी मुस्कुराए और बोले, “पहाड़ों को चढ़ने के लिए केवल ताकत नहीं, बल्कि धैर्य भी चाहिए।”
उन्होंने कुछ टिप्स दिए:
- धीरे-धीरे चलो, जल्दबाज़ी मत करो।
- एक-दूसरे की मदद करो और टीम बनकर चलो।
- पहाड़ों की भाषा को समझो—कहाँ फिसलन है, कहाँ ठहरना सही रहेगा।
यह सुनकर तीनों बच्चों के चेहरे पर आत्मविश्वास लौट आया।
अध्याय 5: विजय की ओर
एक हफ्ते बाद, वे फिर से अपनी यात्रा पर निकले। इस बार उन्होंने दादा जी की सीख को अपनाया।
उन्होंने धीरे-धीरे चढ़ना शुरू किया। जब हवा तेज़ हुई, तो वे चट्टानों के पीछे रुक गए। जब फिसलन भरी ज़मीन आई, तो उन्होंने एक-दूसरे का हाथ पकड़कर सहारा दिया।
और आखिरकार…
वे चोटी तक पहुँच गए!
उन्होंने चारों ओर देखा—पूरा गाँव नीचे नज़र आ रहा था। सूरज की किरणें उनके चेहरे पर पड़ रही थीं। यह उनकी जीत थी!
नेहा खुशी से चिल्लाई, “हम कर दिखाया!”
अली ने कहा, “यह हमारी एवरेस्ट थी!”
राजू ने कहा, “अगर हम यह कर सकते हैं, तो असली एवरेस्ट भी एक दिन चढ़ सकते हैं!”
अध्याय 6: पूरे गाँव को हौसला मिला
जब वे नीचे लौटे, तो पूरा गाँव उनकी बहादुरी देखकर दंग रह गया।
गाँव के मुखिया ने कहा, “तुम बच्चों ने हमें सिखाया कि अगर हौसला एवरेस्ट जैसा हो, तो कोई भी पहाड़ बड़ा नहीं होता!”
अब गाँव के बाकी बच्चे भी प्रेरित हो गए। उन्होंने भी अपने सपने बड़े करने शुरू कर दिए।
तीनों बच्चों ने साबित कर दिया कि असली एवरेस्ट सिर्फ पहाड़ नहीं, बल्कि वह हौसला है जो हर इंसान के भीतर होता है।
यह कहानी हमें सिखाती है कि हिम्मत, मेहनत और धैर्य से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। अगर छोटे गाँव के ये बच्चे इतनी ऊँचाई तक पहुँच सकते हैं, तो हम भी अपने जीवन के हर एवरेस्ट को फतह कर सकते हैं!
“अगर हौसला एवरेस्ट जैसा हो, तो कोई भी मंज़िल मुश्किल नहीं!”